Poem in Hindi
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What is Poem in Hindi?
Poem in Hindi is kind of or a collection of poems which are written in Hindi language.Actually the poems which are written in hindi are called Poem in Hindi.
Also Read Bengali Love Poem
People also call this Kavita in Hindi or Hindi Kavita.So in this post you will get the best collection of Poem in hindi and Hindi Kavita which are written by India's best hindi poem writters.So lets start and read some Poem in Hindi.
Poem in Hindi
धरती और आसमान
मैं? मैं हूँ एक प्यारी सी धरती
कभी परिपूर्णता से तृप्त और कभी प्यासी आकाँक्षाओं में तपती.
और तुम? तुम हो एक अंतहीन आसमान
संभावनों से भरपूर और ऊंची तुम्हारी उड़ान
कभी बरसाते हो अंतहीन स्नेह और कभी.....
सिर्फ धूप......ना छांह और ना मेंह.
जब जब बरसता है मुझ पर
तुम्हारा प्रेम और तुम्हारी कामनाओं का मेंह
खिल उठता है मेरा मन और
अंकुरित होती है मेरी देह.
युगों युगों से मुझ पर हो छाए
मुझे अपने गर्वित अंक में समाये
सदियों का अटूट हमारा नाता है ...लेकिन
फिर भी कभी सम्पूर्ण ना हो पाता है.
धरती और आसमान....मिलते हैं तो सिर्फ क्षितिज में
सदियों से यही होता आया है ...और होगा.
जितना करीब आऊं
तुम्हारा सुखद संपर्क उतना ही ओझल हो जाता है.
लेकिन इन सब से मुझे कैसा अनर्थ डर?
अंतहीन युगों के अन्तराल से परे ...जब चाहूँ...
सतरंगी इन्द्रधनुषी रंगों की सीढियां चढ़ती हूँ
रंगीले कोहरे में रोमांचक नृत्य करती हूँ
परमात्मा के रचित मंदिर में तुम पर अर्चित होती हूँ
तुम्हें छू कर, तुम्हें पा कर, तुम पर समर्पित हो कर
फिर खुद ही खुद तक लौट आती हूँ.
अब ना मिलने की ख़ुशी है और ना ही ना मिलने का गम
मैं अब ना मैं हूँ और ना तुम हो तुम.... हैं तो बस अब सिर्फ हैं हम.
सिर्फ कहने भर को हूँ तुमसे मैं दूर.....
तुम्हारे आकर्षण की गुरुता में गुँथी
परस्पर आत्माओं के तृषित बंधन में बँधी
तुम्हारी किरणों के सिंधूरी रंगों से सजी
तुम्हारे मोहक संपर्क में मेरी नस नस रची.
मैं रहूँगी तुम्हारी प्रिया धरती
और रहोगे तुम मेरे प्रिय आसमान
मैं? मैं हूँ आसमान की धरती, और तुम?
तुम हो धरती के आसमान.
प्यास
इस कदर छाई है दिल और दिमाग पर तेरी याद की आंधी
इस तूफ़ान में उड़ कर भी तेरे पास क्यों नहीं आ पाती?
इस कदर छाई है तन बदन पर तुझसे मिलने की प्यास
इस प्यास में तड़प कर भी तुझमें खो क्यों नहीं पाती?
बस आ...कि अब तुझ बिन कोई भी मुझे संभाल नहीं सकता
गंगा की वेगवती लहरें शिव की बलिष्ठ जटाएं चाहती हैं
बस आ..कि अब तो आंखें बहुत प्यासी हैं...और....
तेरे दर्शनों के सिवा अब कुछ भी इस प्यास को बुझा नहीं सकता.
तेरी बाँहों के झूले में झूल जाऊं
तेरी आँखों की नमीं में घुल जाऊं
तेरे हाथों की छूअन से पिघल जाऊं
तेरे गर्म सांसो की आँच में जल जाऊं...
तब हाँ...तब....
तब मेरे बदन की सब गिरहें खुल जायेंगी
और मैं तेरी बाँहों में और भी हल्की हो जाऊँगी
एक नशा सा हावी होगा मेरी रग रग में
और मैं एक तितली की तरह
रंगों में सराबोर हो कर आकाश में उड़ जाऊँगी.
चाहे जब मुझे आकाश में उड़ाना, पर मुझे अपनी चाहत में बांधे रखना
ताकी तेरे बंधनों में बंध कर जी सकूँ, उड़ने का सुख पहचान सकूँ
मुझे प्यासी ही रखना, ताकी तेरे लिए हमेशां प्यासी रह सकूँ
मरते दम तक इस प्यास को जी सकूँ, और इसी प्यास में मर सकूँ
अजीब ही बनाया है मालिक ने मुझे
पास लाकर भी दूर ही रखा है तुझसे...
वो ही जानता है इसका राज़.
शायद इस लिए की मिलने की खुशबू तो पल दो पल की , और फिर ख़त्म....
पर जुदाई की तड़प रहती है बरकरार, पल पल और हर दम...
इसी तड़प और इसी प्यार में जी रही हूँ मैं...
हर पल, हर दिन....
तुझसे मिलने की आस में, इंतज़ार में, गुम हूँ मेरे हमदम.
Poem in hindi mai
कोहरा
हर तरफ छाया है कोहरा...आँखें हैं कुछ मजबूर
धुंधली सी बादल की एक चादर है
कुछ नहीं आता नज़र दूर दूर...
बस कुछ थोड़ी सी रोशनी और उसके पर सब कुछ खोया खोया सा...
मगर इस कोहरे के पार भी है कुछ...दिख रहा जाना पहचाना सा.
हाँ...तेरा चेहरा है...
प्यार बरसाता, मुस्कुराता सा, आँखों में लिए हजारों प्यार के झरने
दिल में अरमानों की झंकार सुनाता सा, होठों पर हैं मीठी मुस्कानों के नक्श गहरे.
तेरे सहारे और प्यार की ताकत है..
जो इस कोहरे के पार भी तेरा प्यारा चेहरा साफ़ दिखाए देता है
चल...जिन्दगी के इस त्यौहार को जी भर के जी लें
मनाएं खुशियाँ .....क्योंकि अभी तुझे और मुझे भी सांस आता है.
तुझ संग बीते लमहों की परछायीआं
मेरे उदास क्षणों को रोशनी देतीं हैं
जब मैं होती हूँ और मेरी तनहाईयाँ
तब ये बीते लम्हें जुगनू बन कर टिमटिमाते हैं
इन प्यार के ख्यालों के सामने कुछ भी सूनापन रह नहीं सकता
तेरा प्यारा चेहरा किसी कोहरे के पीछे छुप नहीं सकता.
Poem in hindi patriotic
समुन्दर
नीले समुन्दर का साया आँखों में भर के
तेरी प्यारी आँखों के समुन्दर में डूबने को जी चाहता है
मचलती लहरों की मस्ती दिल में भरके
तेरी बाँहों के झूले में झूलने को जी चाहता है
समुन्दर का खारा पानी मूहँ में भरके
तेरे होठों के अमृत की मिठास चखने को जी चाहता है
आ ना सजन, अपनी बाँहों में कस ले मुझे
आँखों में बसा ले मुझे, और
अपने होठों की मिठास, मेरे तन मन और आत्मा में भर दे
प्यासी हूँ तेरे प्यार की, कभी नहीं थकूँगी तेरे प्यार से
समुन्दर के रूबरू, आकाश की गोद में, पाताल की गहराईयों में....
कहीं भी तू बुलाये तो मैं आऊँगी
जनमों से तेरी दासी हूँ आ कर तुझमें ही समा जाऊँगी
मेरे बच्चे, मेरे प्यारे
मेरे बच्चे, मेरे प्यारे,
तू मेरे जिस्म पर उगा हुआ
इक प्यारा सा नन्हा फूल...
क्या है तेरा मुझसे रिश्ता?
बस....एक लाल धागे का...
टूटने पर भी उतना ही सच्चा, उतना ही पक्का
जितना परमात्मा से आत्मा का रिश्ता.
तेरी मुस्कुराहटों से जागता है
मेरी सुबहों का लाल सूरज.
तेरी संतुष्टी में ढलता है
मेरी शामों का सुनहरी सूरज.
तेरी हिम्मतों से खिलता है
मेरी रातों का सफेद चंद्रमा.
तेरी खुशियों में झिलमिलाते हैं
मेरी रातों के चंचल तारे.
तेरा जीवन सफ़र है मेरी आकाशगंगा
जहाँ तेरी कामयाबी ...है मेरा स्वर्णिम मुकाम वहीँ
जहाँ तू नहीं...वो स्वर्ग हो कर भी मेरे लिए स्वर्ग नहीं.
तेरी हिम्मत की बताये रास्तों पर चल कर
उलझने की बजाये तूने अपना रास्ता खुद चुना.
मोती मिलेंगे तुझे...मेरे बच्चे...
बस जिन्दगी की सिप्पियाँ खुद ही खोल कर देखना होगा.
अंतहीन नीले आसमान की ऊंचाइयो में अकेले पंछी की तरह धीरज से उड़ना होगा.
अपनी रातों के रंगीन सपनों को खुली आँखों से हकीकत में उतारना होगा.
अपनी खामोशियों में मचलते शब्दों को चुन चुन कर गीतों से संवारना होगा.
अपनी राहों में परमात्मा की उंगली थामे बादलों के महलों में छुपे खज़ाने को खुद ही तलाशना होगा.
वेदों की सच्चाईओं का आशीर्वाद देती हूँ तुझे...
तेरी आँखों में हर पल सूरज की रोशनी जगमगाए
वायू देवता तेरे प्राणों में निरंतर बसें
वाणी में अग्नी सी साफ़ सच्चाई और
चंद्रमा की चांदनी सी मासूमियत तेरे दिल में बसे.
ओ परमात्मा ...
मेरे बच्चे के संकल्प मंगलमय कर दे
उसके रोम रोम में चिंतन की काबिलियत भर दे
मेरे बच्चे के मन में सच्चाई, शांती और मुहब्बत भर दे
मेरे बच्चे को अपना प्रिय जान उसका जीवन सुखमय कर दे
अपने रहमों करम की बारिश से मेरे बच्चे के घर में दाने भर दे.
Poems about love for him
माँ...क्या एक बार फिर मिलोगी?
तिनका तिनका जोड़ा तुमने, अपना घर बनाया तुमने
अपने तन के सुन्दर पौधे पर हम बच्चों को फूल सा सजाया तुमने
हमारे सब दुःख उठाये और हमारी खुशियों में सुख ढूँढा तुमने
हमारे लिए लोरियां गाईं और हमारे सपनों में खुद के सपने सजाये तुमने.
हम बच्चे अपनी अपनी राह चलते गये, और तुम?
तुम दूर खडीं चुपचाप अपना मीठा आर्शीवाद देतीं रहीं.
पल बीते क्षण बीते....
समय पग पग चलता रहा...अपना हिसाब लिखता रहा...और आज?
आज धीरे धीरे तुम जिन्दगी के उस मुकाम पर आ पहुंची
जहाँ तुम थकी खड़ी हो ---शरीर से भी और मन से भी.
मेरा मन मानने को तैयार नहीं, मेरा अंतर्मन सुनने को तैयार नहीं...
क्या तुम्हारे जिस्म के मिटने से सुब कुछ खत्म हो जायेगा?
क्या चली जाओगी तुम अपने प्यार की झोली समेट कर?
क्या रह जायेंगे हम तुम्हारी भोली सूरत देखने को तरसते हुए?
क्या रह जायेंगे हम तुम्हारी गोदी में छुपा अपना बचपन ढूँढते हुए?
बोलो माँ?
क्या कह जाओगी इन चंदा सूरज धरती और तारों से?
इन राह गुज़ारों से.....नदिया के बहते धारों से?
क्या कह जाओगी माँ? किसी सौंप जाओगी हमें माँ?
या फिर....? या फिर....?
बिखरा जाओगी अपना प्यार अपनी दुआएं और अपनी ममता
इस कायनात के चिरंतन समुन्दर की लहर लहर पर?
क्या इस जनम में चुन पायेंगे हम वो दुआएं?
पर वादा है माँ.....
इन सब जनमों के पार हम फिर मिलेंगे
तुम्हारी दुआएं चुन कर.
तुम्हारे प्यार से भरी झोली समेट कर, एक नया जिस्म ले कर
हम फिर मिलेंगे माँ...
जन्म जन्मान्तरों से परे...हंसते मुस्कराते.. हम फिर मिलेंगे
फिर एक नई दुनिया बसाएँगे...
इन बिखरते आंसुओं को चुन कर खुशियों में बदल देंगे
पापा, मै, तुम और बच्चे, हम फिर मिलेंगे, हमेशां साथ साथ खुश रहेंगे.
इन शब्दों को लिखते जीते जो आंसू मैने गिराये
और जो तुमने नहीं देखे,
वो आँसू तुम पर मेरा क़र्ज़ हैं माँ....
तुम्हें भी ये क़र्ज़ चुकाना होगा
इन बिखरे आँसूओं को समेट कर खुशियों में बदलना होगा
तुम्हें भी एक वाद करना होगा.....
क्या फिर से एक बार जन्म जन्मान्तरों के पार मिलोगी?
क्या फिर एक बार मुझसे लाल धागे का रिश्ता जोड़ोगी?
क्या फिर एक बार मुझे अपने तन पर सुन्दर फूल सा सजाओगी?
क्या फिर मेरी नन्हीं उंगली थामे मेरे संग-संग चलोगी?
क्या फिर मेरी वाणी पर अपना सम्मोहन बिखराओगी?
क्या फिर अपनी ममता की छाया से मेरा जीवन संवार दोगी?
क्या फिर अपनी मीठी लोरियां गा कर मुझे सुलाऔगी?
क्या फिर मुझे सजना संवरना और गुनगुनाना सिखाओगी?
क्या फिर मेरे नन्हे पंखों में ऊंची उड़ान भरोगी?
बोलो माँ? क्या फिर एक बार मिलोगी?
Poem in Hindi
करवाचौथ का त्यौहार
दुल्हन का सिंगार और किसी की आँखों में बसने का विचार
पूरा ही ना हो पाया...
और इस दिलो-जान से प्यारे दिन की वीरानी
मेरे रग रग में एक ठंडे लोहे की तरह उतर गयी.
मुझे भी विकल करती है उन कंगनों की झंकार
जिनसे मैंने अपनी उदास बाहें नहीं सजाई.
मुझे भी सताती हैं मेहंदी की वो लाल मदमाती लकीरें
जो मेरी आकांक्षित हथेलियों पर नहीं लहराईं.
मुझे भी आमन्त्रण देती है उन पायलों और बिछूओं की कसमसाहट
जो मेरे तन मन को कस के बाँध ही ना पाई.
मुझे भी श्राप देते हैं मेरी चिरंतन सूनी सेज के वो फूल
जिनके अंगारों में मैं एक तड़पती बिजली सी दहक ही ना पाई.
और फिर पल बीते....और फिर धीरे धीरे...
मै इक मचलती दरिया ना रह कर निपट सूनी मिटटी से भरी दरिया में परिवर्तित हो गयी
रस के सब धारे तो सूख गए पर....
मै अभी जिन्दा हूँ.......
इस मन का क्या करुँ?
कहाँ ले जाऊं?
कैसे दिलासा दूँ?
क्या बहाना बनाऊं?
इस मन की यंत्रणा किसे समझाऊँ?
जो हर वर्ष शोक मनाता है अपने टूटे दिल का,
जो अब किसी तरह की उम्मीद भी नहीं रखता.
जो अब किसी बंधन में बंधने को भी नहीं तरसता,
जो अब चाहता है तो सिर्फ परमात्मा से आत्मा के मिलन का रिश्ता.
जो बस अब यही चाहता है कि..
जो बदल ना पाया उसे सहने की हिम्मत जुटा ले
जो विरह के दुःख मिले उन्हें अपने आँचल में छुपा ले
और चुप चाप रो ले,..आँसू बहा ले....
कुछ ऐसे आँसू जो बहें तो शर्मिन्दगी ना महसूस हो
कुछ ऐसे आँसू जो बहें तो दिल को दिलासा दें
कुछ ऐसे आँसू जो बहें तो मन को राहत दें
कुछ ऐसे आँसू जो बहें तो आत्मा को निखार दें
कुछ ऐसे आँसू जो बहें तो अगले जनम का आईना निखार दें
जिस आइने में मैं फिर से खुद को देखूं ...ऐसे कि....
फिर एक रंग बिरंगी पंखों वाली तितली
जो इन्द्र धनुष तक उड़ सकने की क्षमता रखे
फिर एक मचलती खिलखिलाती दरिया
जो इस बंजर धरती को अपने रस से उबार दे
फिर एक सोलह श्रृंगार युत दुल्हन
पहने सिंदूर, पायल, बिछिया, कंगन, और
अपने साँवरे की सेज गुंजार दे
Poems about life
मेरी रूह - मेरा वादा
मेरी नज़रों ने वायदा किया है मेरी रूह से
कि सनम तेरे सिवा कुछ ना देखेंगी
तू ये जानता है ना कि मेरी रूह तू है?
मैं शायद खुदा की बनायी पहली और अकेली औरत हूँ
जो अपने जिस्म के टुकड़े से ज्यादा प्यार अपने आदमी से करती है
क्योंकि जिस्म के सब टुकड़े भी तो तूने दिए हैं
क्योंकि मेरी जिन्दगी की ये पवित्र खुशी भी तो तूने दी है
क्योंकि इस मन को बेइंतहा सहारा भी तो तूने दिया है
क्योंकि मुझ नाचीज़ को आसमान पर उड़ना भी तो तूने सिखाया है.
तू इतना जान ले हमदम की तेरे बिना मैं कुछ भी नहीं
कि मेरी ख़ुशी मेरी जिन्दगी तू है
कि तेरे बिना जिन्दगी जिन्दगी ही नहीं
मेरी रूह ने वादा किया है मेरे खुदा से कि सनम
अगर तुझसे हुई जुदा तो तड़प के मर जायेगी
रूहों का सफ़र कभी फनां नहीं होता, पर
मेरी रूह तेरे बिना ना जी पायेगी...
बहुत डरती हूँ की कभी इस हालत पर ना पहुंचूँ कि
तुझसे चाहूँ तो बात ना कर सकूँ.
चाहूँ तो तुझे देख ना सकूँ.
तेरी पुरसुकूँन आवाज का मीठा अमृत अपने दिलो दिमाग में
ना महसूस कर सकूँ.
ऐसा तो हो नहीं सकता, सिवाय तब की जब
तू मुझसे जुदा हो गया हो और मौत के अंधेरों में खो गया हो
क्योंकि ये तो हो नहीं सकता कि जीते जी तू मुझसे रूठ गया हो.
मेरे होते तू मर नहीं सकता
क्योंकि मेरी जिन्दगी तू है, गर मै हूँ जिन्दा
तो फिर तू भी यहीं कहीं है.
मेरी हंसी खुशी सब तू ही है
मेरी जान...मै जीना चाहती हूँ, हँसना चाहती हूँ
क्या मेरी खातिर रहेगा तू हमेशाँ जिन्दा?
क्या मेरी खातिर रहेगा तू हमेशाँ मेरा दिलबर?
क्या मेरी खातिर रहेगा यही तेरे ख्यालों का असर?
दिल चाहता है कि खुदा से और तुझसे एक वादा ले लूं..
कि देखेंगी मेरी आँखें तुझे ही
जब तक मेरी आँखों में देखने की हिम्मत है
कि सुनूँगी तेरी आवाज़ जब तक जिंदा हूँ
कि तेरी गैर मौजूदगी का एहसास ना हो
कि कभी मजबूर ना होऊँ तेरी दूरी से
कि सोऊँ जब चिरनिद्रा में तो
रूह में, आँखों में समा कर तुझे...
कि जाऊं मैं तुझे छोड़ कर, ना कि तू मुझे.
तुझसे जुदा मैं कभी हो नहीं सकती, बस
मेरी मौत है तेरी दूरी मेरे लिये..
तू ना होगा तो किस को इस पागलपन से चाहूंगी?
तू ना होगा तो किस से इस पागलपन से लडूंगी?
तू ना होगा तो किस से इस पागलपन से प्यार कर सकूंगी?
तू ना होगा तो कौन दिखायेगा मुझे इस धरती पर स्वर्ग?
तू ना हो तो कौन मुझे पलकों पर बिठाएगा?
तू ना होगा तो कौन मुझे जिन्दा रखेगा?
तू रह जिन्दा सनम ताकि मैं जी सकूँ
तू रह शादाब ताकि मैं हंस सकूँ
तू रह ताकि मेरी आस पास तेरे वजूद की खुशबू रहे
तू रह इस दुनिया में ताकि ये दुनिया रहने के काबिल रहे
तू चल ताकि तेरे साए की छावं में, मैं शांती से सफ़र कर सकूँ
तू रह आबाद ताकि मैं बस सकूँ
बस तू ही तू है, इस जिन्दगी में, रूह में, सफ़र में,
तू रह मेरी आस पास ताकि मैं हँसते हँसते मर सकूँ.
बहुत खुश हूँ मैं कि जिन्दगी ने मुझे अधूरा नहीं लौटाया
एहसान है तेरा की मुझे प्यार में जीना आया
कद्रदान हूँ तेरी कि अपनी कोख में तुझे समाया
शुक्रगुज़ार हूँ तेरी कि खुदा की जांनिब तुझे पाया
दौलतवार हूँ कि तेरी छाहँ का आशियाँ पाया.
मेरे प्यारे, परम पिता के बनाये आदमी, तू इतना प्यारा क्यों है?
तू इतना दिल को समझने वाला हमसाया क्यों है?
तेरे जनमदाता में जरूर कुछ होगा कि तू एक चीज़ है
कभी सोचती हूँ... उस वृक्ष को भी चाहती हूँ मैं जिसका तू बीज है.
Kavita in hindi mein
कहानी
वो आया
मेरा मन कुछ भरमाया
इससे पहले कि मै कुछ सोचती
अपने मन को टटोलती या कुछ सपने बुनती
अचानक पाया कि
वो तो था सिर्फ एक साया.
सालों बीते
जिन्दगी ने एक दिन फिर सामने ला खड़ा किया
मैने हैरानी से पलकें झपकाईं तो
उसे उसके जीवन साथी के संग पाया,
और वो?
कुछ नया नया सा...
हालांकि पुरुष था,
फिर भी कुछ शर्माता सा पेश आया.
मैं अचानक नींद से जागी
सब उमीदें जैसे पर लगा कर भागीं
और मैं जिन्दी के पथरीले धरातल पर आ खड़ी हुई.
तो अब? अब आगे बदना होगा
खुद ही खुद को संभाल कर
नई राहें तलाश करने को चलना होगा.
मैं चलती रही
कुछ राहें बनती रहीं, कुछ मैं बनाती रही
वो भी चलता रहा
पुरुष था ना,
उसके लिये राहें आसानी से खुलती रहीं
सालों पर सालों की परतें जमती रहीं.
एक दिन फिर मिले
वो ही पुरानी बातें.....पुराने शिकवे गिले
मेरे सपनों की रानी थीं तुम
क्यों तब कुछ नहीं बोलीं थीं तुम?
आज भी तुम्हें पूजता हूँ.
काश...तुम्हारा हाथ थाम कर चला होता
तो सफ़र कुछ अलग अंदाज में ढला होता.
मैं फिर हैरान परेशान......
वापिस मन की गहराईयों में उतरी
अपने वर्त्तमान की ऊचाईयों नीचाईयों में भटकी
शायद अभी भी कुछ था
जो कसमसाता था, सवाल करता था
कि ये ना होता तो क्या होता?
वैसा होता तो क्या अच्छा होता?
सवाल तो बहुत थे पर जवाब कुछ ना आया.
फिर एक दिन जाना
कि वो मौत से वाबस्ता था
मेरा मन ना रोता था ना हँसता था
फिर भी ना जाने क्यों यूँ ही पल पल तड़पता था.
आखिर आ खड़ी हुई परम पिता ईश्वर के द्वारे
माँगी दुआएं,
और बांधी हर ठिकाने मन्नती धागों की कतारें.
जाने मेरे धागे पक्के थे
या फिर मेरी दुआएं सच्चीं
या फिर था बस एक बहाना....
वो मौत के दरवाज़े से
खुदा के रहमों करम में लिपटा लौट आया.
जिन्दगी की रफ़्तार बहुत भारी है
वो ही दस्तूर अब फिर से ज़ारी है
अब ना कोई खबर आती है ना जाती है
मगर इतना जानती हूँ कि
आजकल वो फिर से हँसता बसता है
पर हाँ....अब फिर से उसका और मेरा अलग अलग रास्ता है.
क्या करें?
खुदा के बन्दे हर नए मोड़ पर एक नया रास्ता तलाशते हैं..
और फिर..
जिन्दगी के सफ़र तो बस अपने अपने ठिकानों पर ही जँचते हैं.
Hindi Kavita on love
दिल के राज
मेरे दिल के राज, मेरी जिंदगी का ताना बाना
पूरा तो मैने भी ना जाना
तो तुम्हें कैसे बताऊँ कि कब हुआ मेरे सपनों के नगरी में तुम्हारा आना जाना.
तुम्हारे प्यार का सुकून तुम्हारे प्यार की मस्त मदहोशी
मेरे हिस्से की ख़ामोशी, मेरे हिस्से की मदहोशी
क्या पूरा पूरा जी पाई? या फिर टुकड़ों में?
पहले तो खुशियाँ दिमाग में समाई
और फिर बाद में मेरे अस्तित्व को तोड़ती रुदन के आंधी आई.
पर देखो...मैं आज भी खड़ी हूँ --- आखिर कर लिया खुद को साकार
इस दुनिया में परमात्मा ही तो है चिरंतन और निराकार
बस मना लिया खुद को...
कि मैं भी हूँ उसी का शाश्वत आकार...
तो फिर जिन्दगी के हादसों से कैसी तकरार?
इतना प्यार करुँ सबसे इस परमात्मा की सृष्टी में
कि बस घायल हों जाऊं...... और ख़ुशी ख़ुशी कुर्बान
ताकी ला सकूँ सबके चेहरे पर एक तृप्त मुस्कान
बनाऊं मुहब्बत की पराकाष्टा की समाधी
और बस एक जुट हों जाऊं उसमें तल्लीन
जिस तरह थी कृष्ण के होठों पर बीन
प्रभु की नगरी
कौन कौन है बसता इस सुनहरी नगरी में
कुछ अपने कुछ पराये
कुछ कोहरे कुछ साए
धुंधले हैं या उजले?
रमती रहूँ इस नगरी में या फिर बेघर हो जाऊं?
इस नगरी में मेरा कुछ ना अपना ना पराया,
सब प्रभु का जाया और फिर उसमें ही समाया
मैंने तो कुछ ना बनाया ना बसाया
कोई भी चिरंतन गीत ना लिखा ना गाया
तो फिर इस जादुई नगरी में क्या पाया?
प्रभु ने भेजा पालना....
पर मेरा मन चाहे इसी नगरी में डोलना
क्यों ना चाहे नए पालने का झूला झूलना?
ऊँची उड़ान भर बादल छूना?
इन्द्रधनुषी सतरंगी किरणों पर लहराना?
क्यों चाहे इसी नगरी में डोलना?
क्या कोहरे में पलते सपनों की चमकीलीं परतें नहीं है खोलना?
प्रभु से कैसे हो मिलन?
मैं इक बहता दरिया और परमात्मा इक विशाल समुन्दर
कब तक ना होगा मेरा उससे मिलन?
इधर जाऊं उधर जाऊं -- क्यों?
समुन्दर में समा जाऊं तो बस फिर सुकून से बहती जाऊं.
समुन्दर की हो कर
उसकी तरंगों में अपना पूर्ण अस्तित्व खो कर
बस उस जैसी ही हो जाऊं.
सच
तुम्हारा सच, मेरा सच
बस तुम जानो या मैं जानूं.
तो फिर क्यों है इतनी उम्मीदें, बंधन और कड़वाहट?
तुम्हारा अकेलापन या मेरा अकेलापन
बस तुम जानो या मैं जानूं.
तो फिर क्यों है इतना इंतज़ार और बेकरारी
एक आकांक्षित मिलन की?
तुम्हारे सपनों की हंसीं या उनका रुदन
मेरे सपनों की हंसी या उनका रुदन
बस तुम जानो या मैं जानूं.
तो फिर क्यों है नींदों में मचलती मुस्कुराहटों की झंकार?
जन्म और मृत्यु के बीच का अंतराल
मृत्यु और जन्म के बीच का अंतराल
ये बस तुम जानों या मैं जानूं कि क्यों है इतना इंतज़ार.
अपनी मुहब्बत की दुनिया के राजा रानी, उसी मुहब्बत की दुनिया के भिखारी क्यूं होते है?
Kavita on life hindi
इच्छाओं का घर
इच्छाओं का घर--- कहाँ है?
क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना?
इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर.
पर किसने दी हैं ये इच्छाएं?
क्या पिछले जनमों से चल कर आयीं
या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं?
पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं?
क्या इच्छाएं मार डालूँ?
या फिर उन पर काबू पा लूं?
और यदि हाँ तो भी क्यों?
जब प्रभु की कृपा से हैं मन में समाईं?
तो फिर क्या है उनमें बुराई?







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